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Sep21
एड्स के रोगी आज भी उपेछित हैं-कुछ सच्ची कहान&
एड्स के रोगी आज भी उपेछित हैं-कुछ सच्ची कहानियां जो हमें कंपा देंगी पर समाज में व्याप्त अंधविस्वास और भ्रम,एड्स पीडितो की ले लेता है जान,सख्त कानून इलाज़ जाँच से दूर रहने को करता मजबूर -सेक्स में लिप्त समाज में एड्स फैलता फूलता चारो और

प्रोफेसर डॉ राम :एड्स / HIV तथा यौन रोग (पुरुष,महिला रोग,गर्भपात) विशेषज्ञ
profdrram@gmail.com,+917838059592,+919832025033 दिल्ली, एनसीआर
एड्स और कैंसर की आधुनिक एलॉपथी दवा(USA & UK)कम दाम पर उपलब्ध
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हर साल एड्स जागरुकता के लिए विभिन्न कार्यक्रम किये जाते हैं लेकिन अफसोस की बात है कि अभी भी लोग जागरुक नहीं हो पाये हैं। यह कड़वी हकीकत उस सभ्य समाज की है, जहां लोगों को इस बीमारी के बारे में मालूम है। जानलेवा बीमारी का दर्द झेल रहे उन लोगों की तकलीफ तब और बढ़ जाती है जब घर वाले या उनके अपने ही उनसे उपेक्षित व्यवहार करते हैं, पर यह निरन्तर जारी है।यंहा तक की सख्त कानून का सहारा ले कर पुलिस और प्रशासन उन पर डंडे बरसता है फलस्वरूप वेश्यावृति और ड्रग सेवन अपराध बन गया है पुलिस पैसे लेने के सिवा इनका खुल के शारारिक शोषण भी करती है ,पैसे और जीवन यापन के लिए सेक्स के सिवा इनके पास विशेष कर ग्रामीण और गरीब शहरी महिलाओ के पास और कोई साधन बचता ही नहीं और समाज के ठेकेदार इन्हे गरीबी का फायदा उठा समाज में बेचने का खुले आम धंधा करते हैं,गेय,लेस्बियन,ट्रांसजेंडर या हिंजरो की तो सुनता ही कौन है समाज और हमारा तो इन्हे बिना समझे या जाने सेक्स का अपराधी मान चूका है I
1.एड्स हो गया माँ बेटी के साथ अपने बेटे और परिवार से दूर कर दी गयी :-----
लखनऊ से बाहर स्थित बंथरा में रहने वाली 29 वर्षीय अनुप्रिया यादव (नाम परिवर्तित) की कहानी आपके दिल को कचोट कर रख देगी। अपने ही घर वालों द्वारा घृणित नजरों से देखी जाने वाली अनुप्रिया को अपनी सात वर्षीय बेटे तक से मिलने नहीं दिया जाता है। घर वालों का मानना है कि अनुप्रिया से कहीं उसके बेटे को एड्स न हो जाये, इसलिए उसे उसके पास भटकने तक नहीं देते। जबकि वो मासूम एड्स के बारे में तो कुछ जानता तक नहीं।
वो बच्‍चा सिर्फ इतना समझता है कि मां की तबियत खराब है। अनुप्रिया की दस वर्षीय बेटी ने बताया कि काफी छुपाने के बावजूद उसके गांव वालों को यह मालूम हो गया कि वह और उसकी मां इस भयावह बीमारी से पीड़ित हैं। गांव वालों ने उसे बिरादरी से अलग कर दिया। अब वह गांव से थोडी दूरी पर सूनसान इलाके में रह रही है। दोनों बच्‍चों का स्कूल से नाम भी कट गया है। घर और गांव तो दूर यहां डाक्‍टर भी उससे उपेक्षित व्यवाहर करते हैं।
2.घायल बेटी के इलाज के लिए भटकती रही मां :-----
कानपुर के रावतपुर की रहने वाली सबीना शेख (नाम परिवर्तित) ने एक दुर्घटना का जिक्र करते हुए बताया कि जीटी रोड पर मार्च 2011 में एक एक्‍सीडेंट हुआ, जिसमें वो हलकी और उसकी बेटी गंभीर रूप से घायल हो गई। वो दौड़ी-दौड़ी पास के नर्सिंग होम में गई। सबीना ने जाते ही बता दिया कि वो और उसकी बेटी एचआईवी पॉजिटव है, लिहाजा उसी हिसाब से उनका इलाज करें। यह सुनते ही नर्सिंग होम ने सबीना और उसकी घायल बेटी को बाहर का रास्‍ता दिखा दिया। रोती बिलखती सबीना अगले नर्सिंग होम में पहुंची, वहां भी उसे यही झेलना पड़ा।बेटी की हालत उससे देखी नहीं गई और तीसरे नर्सिंग होम में उसने एचआईवी का जिक्र तक नहीं किया। नर्सिंग होम ने तत्‍काल इलाज शुरू किया और उसकी बेटी के हाथ में 9 टांके लगे। जरा सोचिये 9 टांकें मतलब बच्‍ची के हाथ का मांस तक दिख रहा होगा, लेकिन एचआईवी सुनकर नर्सिंग होम वालों को न तो मांस दिखा और न ही करहाती बच्‍ची का दर्द।हालांकि यहां भी सबीना को नर्सिंग होम के डॉक्‍टर की फटकार सुननी पड़ी, क्‍योंकि जब बेटी के टांके लग गये तो सबीना ने कहा कि इस्‍तेमाल किये गये औजान ठीक तरह से स्‍टरलाइज़ कर लें, क्‍योंकि उसकी बेटी को एचआईवी है। सबीना ने यह इसलिए बताया क्‍योंकि रक्‍त और एचआईवी पेशेंट्स पर इस्‍तेमाल किये गये औजारों या सिरिंज से एड्स फैलता है। खैर यहां इतनी इंसानियत बाकी थी, कि उसे धक्‍के देकर बाहर नहीं निकाला गया।
3.मौत पर भी बातें बनाते हैं लोग :----
हरदोई के स्‍वयंसेवी ज्ञानेंद्र सिंह ने जो बताया, वो सुनकर तो आप भी कहेंगे, कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग हैं। बड़ा चौराहा के पास रहने वाले ज्ञानेंद्र के पड़ोसी सेवक राम की तबियत अचानक खराब हुई। वो और उसके घर वाले उसे स्‍थानीय नर्सिंग होम में ले गये। नर्सिंग होम ने सेवक को वेंटीलेटर पर रख दिया। रात भर लाइफसेविंग ड्रग्‍स दी गईं। सुबह सेवक की मौत हो गई। नर्सिंग होम ने डेथ सर्टिफिकेट देते समय कह दिया कि सेवक को एड्स था।सेवक के भाई को विश्‍वास नहीं हुआ, उसने उसका ब्‍लड सैंपल ले लिया और एक बड़े डायग्‍नॉस्टिक सेंटर पहुंचा, जहां से रिपोर्ट शाम को मिलनी थी। उधर सेवक के शव को घर लाया गया। लेकिन तब तक एचआईवी की बात पूरे परिवार में फैल चुकी थी। आलम यह था कि सेवक के शव को कोई छूने तक को तैयार नहीं था। सभी को डर था कि कहीं उन्‍हें भी यह बीमारी न लग जाये। तभी ज्ञानेंद्र व उनके साथियों ने मिलकर सेवक के शव को अंतिम संस्‍कार के लिए तैयार किया और दाह संस्‍कार के लिए ले गये। इस दौरान लोग सेवक के बारे में तरह-तरह की बातें बनाते दिखे। कुछ ने कहा, कि सेवक जरूर नशा करता होगा, तो कुछ ने कहा कि अवैध संबंध रखता होगा... लेकिन दाह संस्‍कार के बाद सेवक के भाई के पास नर्सिंग होम से फोन आया कि उसे एचआईवी नहीं था। वो जब चाहें रिपोर्ट ले जा सकते हैं।
अनुप्रिया और सबीना के जीवन की इन सच्‍ची घटनाओं को देखते हुए एक ही बात जहन में आती है। वो यह कि सरकार हर साल अरबों रुपए खर्च करती है, फिर भी देश के लोग एचआईवी को न तो ठीक तरह से समझ पाये हैं और न ही उससे बचने के उपाये जानते हैं। लगता है सरकार सिर्फ खाना पूर्ति करती है,सरकारी धन का सही उपयोग नहीं होता ये वंहा नहीं पहुंचता जन्हा इसे पहुचना चाहिए जिससे गरीब बेसहारा पीड़ित एड्स रोगी आज भी बिना इलाज़ के मर रहे है और समाज से प्रताड़ित रहने को मजबूर है I जबकि सरकारी बाबू और नेता खुद कई NGO बनाकर सरकारी धन या विदेशो से मिले अरबो के धन को विदेशी भ्रमण या बड़े होटलों में एड्स कांफ्रेंस या फिर फ़िल्मी सितारों की महफ़िल सजा एड्स जागरूकता के नाम पर लूट लेते हैं I ये सिर्फ आंकड़े बनाते है जिससे मिडिया में खाना पूर्ति हो जाये इनका ध्यान एड्स की जाँच,दवा और समुचित इलाज़ और एड्स रोगी को समाज में पुनः स्तापित करने में काम ही जाता है I कड़े कानून एड्स रोगियों को अपनी बात कहने से रोकता है क्यूंकि जैसे ही उनके बारे में पता चला इनकी सख्त पुलिस उनका शोसन करना सुरु कर देती है


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